स्निग्धा की भक्ति सुरों से महक उठा गंगा घाट
गंगा आरती में लोकगायिका स्निग्धा के गूंजे भक्ति गीत
गंगा तट पर बही भक्ति और संगीत की पवित्र धारा
वाराणसी। पवित्र गंगा तट पर मंगलवार की शाम एक अनोखा दृश्य देखने को मिला, जब लोकगायिका स्निग्धा की मधुर आवाज़ ने संध्या गंगा आरती को एक नए रंग में रंग दिया। भक्ति और संगीत के इस संगम ने न सिर्फ घाट पर मौजूद श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया, बल्कि पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।
गंगा आरती, जो प्रतिदिन घाटों पर संपन्न होती है, इस बार विशेष रही क्योंकि उसमें लोकगायन की मिठास भी घुल गई थी। लोकगायिका स्निग्धा ने 'हर हर गंगे', 'जय माँ गंगे' और 'नमामी गंगे' जैसे भक्ति गीतों को अपनी स्वर लहरियों में ढालकर प्रस्तुत किया। जब घाट पर दीप जलाकर आरती की जाती रही थी, उसी समय स्निग्धा के सुरों ने घाट पर एक अलौकिक ऊर्जा का संचार कर दिया।
उनकी प्रस्तुति को सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु, पर्यटक और स्थानीय लोग एकत्रित हुए। स्निग्धा ने उत्तर भारत की लोकधुनों और भक्ति रस को जोड़कर भजन प्रस्तुत किए, जो सीधे दिल को छूते हैं। गंगा की लहरों पर जब स्निग्धा की आवाज़ गूंजी, तो मानो प्रकृति भी इस आराधना का हिस्सा बन गई हो।
इस अवसर पर कई धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। उन्होंने स्निग्धा के प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि लोक संगीत के माध्यम से आध्यात्मिकता को जोड़ना आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा आरती की परंपरा को और अधिक लोकप्रिय बनाना तथा संगीत के माध्यम से आध्यात्मिक अनुभव को सुलभ कराना था।
कार्यक्रम के अंत में स्निग्धा ने कहा, "गंगा मेरी माँ समान हैं और उनके चरणों में भक्ति गीत प्रस्तुत करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। लोकसंगीत और भक्ति कागंगा आरती, लोकगायिका स्निग्धा, भक्ति गीत, गंगा घाट,
मेल लोगों के हृदय तक भक्ति का संदेश पहुँचाने का सशक्त माध्यम है।"
गंगा आरती की यह संध्या लंबे समय तक लोगों के दिलों में गूंजती रहेगी। लोकगायिका स्निग्धा की प्रस्तुति ने यह सिद्ध कर दिया कि संगीत और भक्ति का मिलन आत्मा को छूने वाला होता है।