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रथयात्रा की भव्य तैयारी शुरू: बीरूगढ़ में सदियों पुरानी परंपरा फिर जीवंत

बीरूगढ़ में रथयात्रा की भव्य तैयारी शुरू: 16वीं सदी से चली आ रही आस्था की परंपरा फिर होगी जीवंत

बीरूगढ़ में इस वर्ष भी रथयात्रा को लेकर भव्य तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। सदियों पुरानी इस परंपरा की जड़ें 16वीं सदी तक जाती हैं, जब इसे स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की सेवा में आरंभ किया गया था। यह धार्मिक यात्रा न केवल धार्मिक उत्साह से भरी होती है, बल्कि समाज को एक सूत्र में बांधने का भी माध्यम बनती है।


रथयात्रा का आयोजन हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं। तीनों देवताओं के लिए विशेष रूप से लकड़ी के बने विशाल रथों को तैयार किया जाता है, जिन्हें श्रद्धालु खींचते हैं। माना जाता है कि रथ खींचने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।


बीरूगढ़ में इस रथयात्रा की तैयारी कई सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है। स्थानीय कारीगर पारंपरिक तकनीकों का प्रयोग कर रथों का निर्माण करते हैं। नगर को फूलों, तोरणों और रंगोली से सजाया जाता है। सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चौबंद की जाती है ताकि कोई भी अप्रिय घटना न हो। स्थानीय प्रशासन, पुलिस विभाग और स्वयंसेवक संगठनों का सहयोग इस आयोजन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाता है।


इस आयोजन में न केवल स्थानीय लोग, बल्कि दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक भी भाग लेने आते हैं। रथयात्रा के दौरान भजन-कीर्तन, संकीर्तन, धार्मिक प्रवचन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। यह उत्सव समाज में भाईचारे, सेवा और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है।


बीरूगढ़ की रथयात्रा अब केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर बन चुकी है। इसकी लोकप्रियता हर साल बढ़ती जा रही है। युवा वर्ग भी इसमें बढ़-चढ़कर भाग ले रहा है, जिससे परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में सहायता मिल रही है।


इस वर्ष की रथयात्रा विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि यह यात्रा कोविड-19 महामारी के बाद पूरी भव्यता के साथ आयोजित की जा रही है। आयोजकों को उम्मीद है कि श्रद्धालु अधिक संख्या में भाग लेकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन का लाभ उठाएंगे और इस ऐतिहासिक परंपरा को और गौरवशाली बनाएंगे।